जितेंद्र कोठारी, वणी:
राज्य में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। निर्वाचन आयोग द्वारा किसी भी क्षण चुनावों की घोषणा की जा सकती है। ऐसे में चुनाव लडने के इच्छुक उम्मीदवारों के साथ राजनीतिक पार्टियों में हलचल तेज हो गई है। जिले की महत्वपूर्ण वणी विधानसभा क्षेत्र में महाविकास आघाड़ी अभी यह तय नही कर पाई है की यहां से कांग्रेस लड़ेगी या शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गट) को टिकट दिया जाए। टिकिट को लेकर दोनो ही पार्टियां अपना अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं है। इसके चलते महाविकास आघाड़ी में महासंग्राम मचा हुआ है। चंद्रपुर वणी आर्णी लोकसभा क्षेत्र में बल्लारपुर और वणी इन दो जगह पर टिकिट के लिए शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गट) दबाव बना रहा है। मगर कांग्रेस अपने पारंपरिक गढ़ की सीट गंवाने के मूड में दिखाई नहीं देती।
सीट बंटवारे को लेकर महाविकास आघाड़ी में अभी कोई सहमति नही बन पाई है। इच्छुक उम्मीदवारों की अपनी अपनी पार्टी के नेताओ के साथ कई दौर की बैठक हो चुकी है। कांग्रेस पार्टी से पूर्व विधायक वामनराव कासावार सहित संजय खाड़े, डॉ. महेंद्र लोढ़ा, टीकाराम कोंगरे, आशीष खुलसंगे चुनाव लडने के इच्छुक है। दूसरी तरफ शिवसेना के पूर्व विधायक विश्वास नांदेकर सहित संजय देरकर, संजय निखाड़े टिकिट के लिए जोर आजमाइश कर रहे है। कई इच्छुक उम्मीदवार जातिगत समीकरणों के आधार पर अपने आप को टिकिट का दावेदार मान रहे है।
टिकिट को लेकर महायुति के प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी में भी घमासान मचा हुआ है। वर्तमान विधायक भाजपा के संजीवरेड्डी बोदकुरवार टिकिट के प्रमुख दावेदार बताए जाते है। मगर भाजपा के यवतमाल जिलाध्यक्ष व पूर्व नगराध्यक्ष तारेंद्र बोर्डे व भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य विजय चोरड़िया भी टिकिट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे है। हालांकि उम्मीदवार के चयन को लेकर पार्टी स्थानीय पदाधिकारियों के साथ ही आम जनता के बीच सर्वेक्षण की एक पूरी प्रक्रिया अपना रही है।
वणी विधानसभा : 1952 से लेकर 2019 तक
वणी विधानसभा क्षेत्र यह कांग्रेस पार्टी का पारंपरिक गढ़ रहा है। आजादी के बाद 1952 में कांग्रेस के डॉ. देवराव गोहोकर यहां से विधायक चुने गए। 1957 में कांग्रेस के श्रीधरराव जवादे, 1962 से लेकर लगातार 2 बार कांग्रेस के ही विट्ठलराव गोहोकार विधायक बने। 1972 में निर्दलीय प्रत्याशी सीताराम नांदेकर ने बाजी मारी। 1978 व 1980 के मध्यावधि चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी ने अपनी ताकत दिखाई। इस बार कांग्रेस उम्मीदवार बापुराव पानघाटे ने विरोधियों को धूल चटाई। 1985 में चली वामपंथ की हवा में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के नामदेवराव काले विजय रहे। लेकिन उसके बाद 1990 से लेकर 2004 तक लगातार 3 बार कांग्रेस के वामनराव कासावार ने वणी विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व किया। क्षेत्र में विकास कार्य नही होने नाराज मतदाताओं ने 2004 में शिवसेना के विश्वास नांदेकर को विधानसभा भेजा। मगर 2009 में फिर से एक बार कांग्रेस ने यह सीट हथिया ली। 2014 की मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी संजीवरेड्डी बोदकुरवार यहां से विधायक बने। अपने सरल व्यवहार व विकास कामों के प्रति वचनबद्धता के चलते मतदाताओं ने 2019 के चुनावों में संजीवरेड्डी बोदकुरवार को पुनः भारी वोटों से जिताया। मगर फसलों को उचित दाम नहीं मिलने की वजह से आगामी चुनावों में भाजपा उम्मीदवार को किसानों के असंतोष का सामना करना पड़ सकता है।
विधानसभा में मनसे की ताकत बढ़ी
वणी विधानसभा क्षेत्र में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का अच्छा खासा प्रभुत्व है। पिछले दो विधानसभा चुनावो में मनसे प्रत्याशी राजू उम्बरकर ने भाजपा उम्मीदवार को तगड़ी टक्कर दी है। पिछले पांच वर्ष में मनसे ने अपनी ताकत में और इजाफा किया है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे राजू उंबरकर को फिर से वणी विधानसभा से मनसे उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा कर चुके है। ऐसे में महायुति व महाविकास आघाड़ी के संभावित उम्मीदवारों को मनसे का डर भी सता रहा है।